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Friday, October 10, 2025

पुस्तक समीक्षा: गीतांजलि – रवींद्रनाथ ठाकुर

📖 पुस्तक समीक्षा: गीतांजलि – रवींद्रनाथ ठाकुर

  • पुस्तक का नाम: गीतांजलि (Gitanjali – Song Offerings)

  • लेखक: रवींद्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Tagore)

  • मूल भाषा: बंगाली (बाद में अंग्रेज़ी अनुवाद स्वयं लेखक द्वारा)

  • प्रकाशन वर्ष: 1910 (बंगाली में), 1912 (अंग्रेज़ी में)

  • विधा: आध्यात्मिक और काव्यात्मक गीत-संग्रह

  • पुरस्कार: 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार


"गीतांजलि" रवींद्रनाथ ठाकुर की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई और भारत को पहला नोबेल पुरस्कार दिलाने वाली साहित्यिक कृति बनी। यह एक काव्य-संग्रह है जिसमें भक्ति, आत्मा और परमात्मा के संबंध, मानवता, प्रेम और जीवन की साधना का अत्यंत गूढ़ व मार्मिक चित्रण किया गया है।

गीतांजलि में कुल 103 कविताएं (अंग्रेज़ी संस्करण में) हैं जो मूलतः बंगाली में लिखी गई थीं, परंतु रवींद्रनाथ ने स्वयं इनका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया और उन्हें पश्चिमी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया। अंग्रेजी संस्करण की भाषा अत्यंत सरल, सूफियाना और आत्मिक है।

मुख्य विषय और भावनाएं:

"गीतांजलि" की कविताएं ईश्वर के प्रति समर्पण, आत्मा की यात्रा, जीवन की क्षणभंगुरता, और सच्चे प्रेम और भक्ति को अभिव्यक्त करती हैं। यह किसी विशेष धर्म का प्रचार नहीं करती, बल्कि मानव और ईश्वर के बीच के शुद्ध, आत्मिक संबंध को उजागर करती हैं।

कविताओं में प्रकृति, मृत्यु, ईश्वर और आत्मा जैसे तत्वों का दर्शन और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत चित्रण मिलता है। ठाकुर ने ईश्वर को न तो किसी मंदिर की मूर्ति में बाँधा है, न किसी विशेष रीति में। उनके ईश्वर खेतों में काम करने वाले श्रमिकों, जीवन की साधारण परिस्थितियों में उपस्थित हैं।

उदाहरण:

एक प्रसिद्ध कविता में वे कहते हैं —
"Where the mind is without fear and the head is held high…"
जिसका भावार्थ है — जहाँ मन भयमुक्त हो, और सिर गर्व से ऊँचा हो — वैसा भारत वे चाहते हैं।

शैली और भाषा:
गीतांजलि की भाषा सरल, लयबद्ध, गूढ़ और हृदयस्पर्शी है। इसमें भारतीय दर्शन, वेदांत, और सूफी विचारधारा की छाया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह काव्य पाठक को बाहरी दुनिया से हटाकर अंतरात्मा की गहराइयों में ले जाता है।

महत्त्व और प्रभाव:
गीतांजलि ने भारतीय साहित्य को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। 1913 में रवींद्रनाथ ठाकुर को इस रचना के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, जो कि किसी ग़ैर-पश्चिमी लेखक को मिला पहला साहित्य का नोबेल पुरस्कार था। इससे भारत को सांस्कृतिक गौरव भी प्राप्त हुआ।


🔚 निष्कर्ष:

गीतांजलि केवल एक कविता-संग्रह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह हृदय को शुद्ध करने वाली, आत्मा को स्पर्श करने वाली, और मन को शांत करने वाली रचना है। इसका हर गीत एक प्रार्थना की तरह है — प्रेम, समर्पण और आंतरिक शांति की खोज में। यह पुस्तक न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत भी है।

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