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Friday, October 10, 2025

पुस्तक समीक्षा: कामायनी - जयशंकर प्रसाद

 📖 पुस्तक समीक्षा: कामायनी - जयशंकर प्रसाद

  • पुस्तक का नाम: कामायनी

  • लेखक: जयशंकर प्रसाद

  • भाषा: हिंदी

  • प्रकाशन वर्ष: 1936

  • विधा: महाकाव्य / मनोवैज्ञानिक प्रतीकात्मक कविता

  • शैली: छायावाद


"कामायनी" जयशंकर प्रसाद की अमर काव्य-कृति है, जिसे हिंदी साहित्य के छायावादी युग का शिखर माना जाता है। यह न केवल एक महाकाव्यात्मक कविता है, बल्कि दर्शन, मनोविज्ञान, मानव जीवन के संघर्ष, भावनाओं और विचारों का भी एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

यह काव्य मनु और श्रद्धा की कथा पर आधारित है, जो प्रतीकात्मक रूप में मानव सभ्यता की उत्पत्ति और उसके मनोवैज्ञानिक संघर्षों का चित्रण करती है। कथा की पृष्ठभूमि वैदिक काल के जलप्रलय की घटना से जुड़ी है, जहां एकमात्र बचे हुए मानव मनु की यात्रा, उसकी मानसिक अवस्थाओं, द्वंद्वों और उसकी आत्मा की खोज को लेखक ने अत्यंत गहराई से प्रस्तुत किया है।

काव्य में तीन मुख्य प्रतीकात्मक पात्र हैं –

  1. मनु – बुद्धि और तर्क का प्रतीक

  2. श्रद्धा – भावना, प्रेम और समर्पण की प्रतीक

  3. इड़ा – तर्क, विज्ञान और भौतिक चेतना की प्रतिनिधि

कामायनी में प्रत्येक सर्ग (अध्याय) किसी एक मनोवैज्ञानिक अवस्था या भावना को समर्पित है, जैसे – आनंद, स्मृति, काम, लज्जा, क्रोध, ईर्ष्या, श्रद्धा, इड़ा, आदि। इन सर्गों के माध्यम से कवि ने यह दिखाने की कोशिश की है कि मनुष्य का जीवन केवल तर्क या भावना से नहीं चलता, बल्कि इनके संतुलन से ही मानवता की पूर्णता संभव है।

जयशंकर प्रसाद की भाषा अत्यंत काव्यात्मक, संस्कृतनिष्ठ और भावपूर्ण है। उनका शब्द चयन, उपमा, रूपक और अलंकार इतने समृद्ध हैं कि पाठक एक दार्शनिक यात्रा का अनुभव करता है।

कामायनी केवल एक प्रेम कथा नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के अस्तित्व, उसकी जिज्ञासाओं, उसकी विफलताओं और उसकी संभावनाओं की कथा है। इसमें मनुष्य की चेतना, उसका विकास और उसके अंतरद्वंद्वों को अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है।

मुख्य विषय:

  • मानव जीवन का दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

  • भावना और तर्क का संघर्ष

  • स्त्री-पुरुष संबंधों की प्रतीकात्मक व्याख्या

  • संस्कृति और सभ्यता का विकास

  • आध्यात्मिकता बनाम भौतिकता

निष्कर्षतः, कामायनी केवल एक काव्य नहीं है, बल्कि यह भारतीय दर्शन, मानव मनोविज्ञान और सांस्कृतिक चेतना का दर्पण है। यह हिंदी साहित्य की सबसे गूढ़, गहन और कलात्मक कृतियों में से एक है। इसकी भाषा कठिन अवश्य है, पर जो पाठक इसकी गहराई में उतरता है, वह मानवता के सच्चे अर्थों को पा सकता है।

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